पिता हारकर बाज़ी हमेशा मुस्कुराया शतरंज की उस जीत को मैं अब समझ पाया

वो शख्स सूरमा है मगर  बाप भी तो है रोटी खरीद लाया है तलवार  बेच कर

जो चाहूँ वो मिल जाए मुमकिन नहीं ये किस्मत है मेरे पापा का घर नहीं

खुशिया जहाँ की सारी  मिल जाती है जब पापा की गोद में झपकी  मिल जाती है

खुशिया जहाँ की सारी मिल जाती है जब पापा की गोद में झपकी मिल जाती है

न हो तो रोती हैं जिदे,  ख्वाहिशों का ढेर होता हैं पिता हैं तो हमेशा बच्चो का  दिल शेर होता हैं

आपके ही नाम से जाना  जाता हूँ “पापा” भला इस से बड़ी शोहरत  मेरे लिए क्या होगी

मेरी हँसी में छिपे दर्द को  भी पहचानते है वो बाबा है मेरे जो मुझसे  बेहतर मुझे जानते हैं

जिस नीव पर टिके मेरे  सभी धंधे है वो कुछ और नहीं मेरे  पापा के कंधे हैं

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